मत सोचो की सही में कुछ सही और ग़लत में कुछ ग़लत है।
सोचना है तो ख़ुदा को सोचो, करो उसकी इबादत,
वहीं सारी सोहरत है॥
इम्तिहान सोचने का नहीं है, ये तो बस नसीब है मेरा।
मैं थोड़ा कम सोचता हूँ, कभी कभी तो बिलकुल नहीं।
और देखो मुझे लोग अब नासमझ समझने लगे॥
ज़ालिमों ने खेल दिया है खेल, ख़तरनाक और ख़ौफ़नाक,
सोचने का ज़िक्र है तो मैं भी खेल लेता हूँ ये खेल,
पर इसमें तो खून है, और मुझे तो बस दूर से खेलना है,
मन हल्का करना है, पर शायद अब कोई ये खेल नहीं खेलता, खेल सिर्फ़ खूनी जो है॥